कुछ ख़याल जो आते और चले जाते हैं
कभी कभी खुछ ख़याल टकराते रहते हैं, आपको उन्हीं खयालों से रूबरू कराने की ख्वाहिश लिए ये ब्लॉग आपकी खिदमत में हाज़िर है
Friday, 1 September 2023
कुछ मीठी यादें लेता जा
Sunday, 29 January 2023
बचपन नादान बहुत था
बचपन नादान बहुत था
खाली आंगन था मगर
खेलने का सामान बहुत था
अभाव वाली जिंदगी थी
पर जीने का सामान बहुत था
बचपन नादान बहुत था
गाय बछड़े संग सुबह थे बीते
दुपहर बीती पेड़ों पर
शाम के शाम अलाव का संगत
रस्ते बीते थे मेड़ों पर
तारों के नीचे खाट बिछी थी
और दादी की कहानियों में ज्ञान बहुत था
बचपन नादान बहुत था
आज उस नादान बचपन को
नन्हीं बाहों, व्याकुल आंखों में देख रहा हूं
अभाव तो नहीं है ज्यादा
पर भाव वही देख रहा हूं
तुतले सवालात में घिर के समझा
गांव छोटा था मगर वहां सीखने का सामान बहुत था
बचपन नादान बहुत था
Sunday, 30 October 2022
उम्र-ए-दराज़ करेंगे क्या
उम्र-ए-दराज़ करेंगे क्या
जियेंगे क्या, मरेंगे क्या
दिल चाक औ चारागर न मिले
दिल चाक अब सियेंगे क्या
हमसफ़र ही हमखयाल न हो
तो संग सफर करेंगे क्या
जीते हैं कि नब्ज़ चालू है
रुक गई तो हम मरेंगे क्या
सब चल दिए हम भी चलते हैं
आप अब भी यहाँ रुकेंगे क्या
दिल टूटने से नाखुश हैं
चाक-ए-जिगर सुनेंगे क्या
शर्मा गयी हयात उनसे
मेरे मेहबूब से मिलेंगे क्या
Monday, 16 March 2020
मझधार
Sunday, 24 November 2019
नन्हे दोस्त!
Monday, 4 February 2019
वो कौन है
वो जो मेरी तरह दिखता है, वो कौन है
वही है, हाँ वही है जिससे मैं हूँ वाकिफ
वो जिसके चेहरे पे शिकन है, वो कौन है
याद है मुझे उसका मुस्कुराता चेहरा
वो जो आज भी शादाब है, वो कौन है
बड़े अदब से मिला करता था कल तक
आज दूर कोने में खड़ा है, वो कौन है
कभी उसके रकीबों में शामिल था मैं भी
जो दुश्मन की तरह देख रहा है, वो कौन है
अजीब होती है ये मज़हब की दीवार ऐ दोस्त
मेरे तेरे दरम्यान डाला जिसने, वो कौन है
चलो तोड़ दें दीवार सभी, फिर साथ हो लें
चले इंसानियत का ये पहला कदम, वो कौन है
नहीं है, न रहेगा अदम से वास्ता 'चन्दन' तुझको
चले इंसानियत की राह हमेशा, वो कौन है
Monday, 21 January 2019
कुरबतों के बाद भी कुछ मस्सला सा लगता है
पास हैं इतने मगर इक फासला सा लगता है।
नजदीकियों के समन भी दूरियों का सिलसिला
बावफा है दोस्त फिर क्यूं बेवफा सा लगता है।
दश्त में डूबे हुए हैं, दरिया में भी प्यास है
ये जहां तो अब मुझे कुछ बुझा बुझा सा लगता है।
दिल रकीबों में भी इक अजनबी बन के बैठा है
रेहगुजर का वो अनजाना मुझे सगा सा लगता है।