Sunday, 29 January 2023

बचपन नादान बहुत था

बचपन नादान बहुत था

खाली आंगन था मगर

खेलने का सामान बहुत था

अभाव वाली जिंदगी थी

पर जीने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


गाय बछड़े संग सुबह थे बीते

दुपहर बीती पेड़ों पर

शाम के शाम अलाव का संगत

रस्ते बीते थे मेड़ों पर

तारों के नीचे खाट बिछी थी

और दादी की कहानियों में ज्ञान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


आज उस नादान बचपन को

नन्हीं बाहों, व्याकुल आंखों में देख रहा हूं

अभाव तो नहीं है ज्यादा

पर भाव वही देख रहा हूं

तुतले सवालात में घिर के समझा

गांव छोटा था मगर वहां सीखने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था

Sunday, 30 October 2022

उम्र-ए-दराज़ करेंगे क्या

उम्र-ए-दराज़ करेंगे क्या
जियेंगे  क्या, मरेंगे क्या 

दिल चाक औ चारागर न मिले
दिल चाक अब सियेंगे क्या 

हमसफ़र ही हमखयाल न हो
तो संग सफर करेंगे क्या 

जीते हैं कि नब्ज़ चालू है
रुक गई तो हम मरेंगे क्या 

सब चल दिए हम भी चलते हैं
आप अब भी  यहाँ रुकेंगे क्या 

दिल टूटने से नाखुश हैं
चाक-ए-जिगर सुनेंगे क्या 

शर्मा गयी हयात उनसे
मेरे मेहबूब से मिलेंगे क्या 

Monday, 16 March 2020

मझधार

 
भावों का मोल नहीं है 
शब्दों पर बात अड़ी है 
दो पाटों के मध्यांतर 
ये जीवन नाव खड़ी है 

उन्मादी लहरें उठती हैं 
हो आतुर मुझे डुबोने को 
कैसे ये पतवार चलेगी 
हैं तीर नहीं मिलने को 

छूटें हैं कूल किनारे 
हम दूर निकल आये हैं 
तूफानों में कश्ती है 
घनघोर जलद छाये हैं 

अब आस एक बची है 
हो पार या कि घिर जाएं 
डूबें हम कूलंकषा में 
या कोई किनारा पाएं 

जीवन की नाव निकालूँ 
या सागर में स्वयं समाऊँ 
दुविधा में मेरा मन है 
भिड़ू या भीरू कहलाऊँ

Sunday, 24 November 2019

नन्हे दोस्त!



ज़िन्दगी तुमसे बेहतर कुछ दे भी नहीं सकती थी
वो एक कुतूहल जो इन नन्हीं आँखों में छुपा है
वो तबस्सुम, वो हंसी जो तेरे चेहरे में रवाँ है
इक छोटी सी हँसी जो हमारी जिंदगी शादाब कर दे
वो हर नया खेल-ओ-वाक़या जो तुम्हे नायाब कर दे
हर इक ग़म, हर इक दर्द को रफ़्ता करने का हुनर
तेरे होने से लगता है ज़िन्दगी में है बसर
वो नन्हीं हथेलियों की छुअन, काँधे पे तेरे सर का स्पर्श
अब मेरी ज़िन्दगी में सब कुछ कि जैसे अर्श ही अर्श
गोद में ले लूं तो जैसे सारी बहार मेरे दामन में
सारे जहान की खुशियाँ हों मेरे आँगन में
सच है, ज़िन्दगी तुमसे बेहतर कुछ दे भी नहीं सकती थी

Monday, 4 February 2019

वो कौन है

पस-इ-आइना जो खड़ा है, वो कौन है
वो जो मेरी तरह दिखता है, वो कौन है

वही है, हाँ वही है जिससे मैं हूँ वाकिफ
वो जिसके चेहरे पे शिकन है, वो कौन है

याद है मुझे उसका मुस्कुराता चेहरा
वो जो आज भी शादाब है, वो कौन है

बड़े अदब से मिला करता था कल तक
आज दूर कोने में खड़ा है, वो कौन है

कभी उसके रकीबों में शामिल था मैं भी
जो दुश्मन की तरह देख रहा है, वो कौन है

अजीब होती है ये मज़हब की दीवार ऐ दोस्त
मेरे तेरे  दरम्यान डाला जिसने, वो कौन है

चलो तोड़ दें दीवार सभी, फिर साथ हो लें
चले इंसानियत का ये पहला कदम, वो कौन है

नहीं है, न रहेगा अदम से वास्ता 'चन्दन' तुझको
चले इंसानियत की राह हमेशा, वो कौन है

Monday, 21 January 2019

कुरबतों के बाद भी कुछ मस्सला सा लगता है

कुरबतों के बाद भी कुछ मस्सला सा लगता है।
पास हैं इतने मगर इक फासला सा लगता है।

 नजदीकियों के समन भी दूरियों का सिलसिला
बावफा है दोस्त फिर क्यूं बेवफा सा लगता है।

दश्त में डूबे हुए हैं, दरिया में भी प्यास है
ये जहां तो अब मुझे कुछ बुझा बुझा सा लगता है।

दिल रकीबों में भी इक अजनबी बन के बैठा है
रेहगुजर का वो अनजाना मुझे सगा सा लगता है।


Wednesday, 22 August 2018

ता-हद्द-ए-नज़र कुछ भी सुझाई नहीं देता
इंसानियत का नाम-ओ-निशाँ दिखाई नहीं देता

उस शय के लिए हो जाते हैं ख़ूं के प्यासे
जिस शय का कोई वुजूद दिखाई नहीं देता

~~ Fani Raj