Tuesday 13 February 2024

आँगन

हुए बड़े, हमने घर छोड़ा, गाँव छोड़ा, खेत-खलिहान छोड़ा 

पेड़ की शाख़ से लटके झूले और साथ ही आम का बाग़ान छोड़ा 


गाँव से दूर आ गये हम शहर, फिर बड़े, और बड़े, बड़े शहर

बांध ली नाम कमाने की ललक, रिश्तों का दामन छोड़ा 


बड़ा ओहदा, बड़ा नाम, साथ में बस काम ही काम  

इक दर-ओ-दीवार की ख़ातिर परिवार का आँगन छोड़ा


ज़िंदगी यूँही बसर होती रही, ये उम्र भी यूँ कटती रही

छूट गई महफ़िलें, दावतें, और यारों का दामन छोड़ा 


भाग कर थक गए, आ गये ज़िंदगी के हासिल पर  

ढूँढते हैं वही अब, सालहा हमने जो चमन छोड़ा


बस ये ख्वाहिश है कि मिल जाये मुझे, फिर से मुझे 

सुकून-ए-शजर, और जो गाँव में सूना सा आँगन छोड़ा   





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