कहीं फट रहे हैं बम, कहीं बरपा हुआ कहर
शब कब से चल रही जाने होगी कब सहर
कुछ लोग मर गए और कुछ हो गए फना
उनको नहीं फिकर कोई वो हैं इससे बेखबर
बच्चे हुए अनाथ और बहनें हुंई बेवा
इससे भी है अनजान और ये सो रहा शहर
वो धर्म बेचते हैं और करते हैं सियासत
इंसानियत को वो ही हैं जो दे रहे जहर
वो माँ बिलख रही है जिसका पूत मर गया
मुड़ मुड़ के देखती है वो बेटा गया जिधर
सुनता हूँ पब में झूमते और नाचते थे वो
खून में था सन रहा जब इस देश का जिगर
इंतज़ार है 'फणि' कि शब ये ढल भी जाये अब
खुशियों का शबब ले कर आये अम्न का पहर