इन मासूम सी आँखों में कुछ ख्वाब दो
बढ़ते हुए बच्चों के हाथों में किताब दो
उन ख़्वाबों में चलो कुछ रंग भर दें
सूखने से पहले उन पौधों में आब दो
बंजर हो जायेंगे वो सुनहरे खेत चलो
इस जमीन को झेलम और चिनाब दो
टूटते तारों में छुपा है एक नया सूरज
चलो अँधेरे जहां को एक आफताब दो
चेहरे के नूर से चमकती हैं आँखे मेरी
गेसुओं से अपने चेहरे को हिजाब दो
जरा नकाब हटाओ रुखसार से अपने
जहाँ को एक और तुम माहताब दो
मेरी आँखों में अभी भी दम है बाकी
मेरे प्याले में साकी थोड़ी शराब दो
जिससे मिलो 'चन्दन' प्यार से मिलो
दुनिया को मुहब्बत तुम बेहिसाब दो
बढ़ते हुए बच्चों के हाथों में किताब दो
उन ख़्वाबों में चलो कुछ रंग भर दें
सूखने से पहले उन पौधों में आब दो
बंजर हो जायेंगे वो सुनहरे खेत चलो
इस जमीन को झेलम और चिनाब दो
टूटते तारों में छुपा है एक नया सूरज
चलो अँधेरे जहां को एक आफताब दो
चेहरे के नूर से चमकती हैं आँखे मेरी
गेसुओं से अपने चेहरे को हिजाब दो
जरा नकाब हटाओ रुखसार से अपने
जहाँ को एक और तुम माहताब दो
मेरी आँखों में अभी भी दम है बाकी
मेरे प्याले में साकी थोड़ी शराब दो
जिससे मिलो 'चन्दन' प्यार से मिलो
दुनिया को मुहब्बत तुम बेहिसाब दो
5 comments:
Kya baat hai...!! Bahut khoob
जनाब आप तो वैसे ही बेहिसाब मोहब्बत बाँट रहे हैं अपनी इन कातिल रचनाओं के ज़रिये!
केवल एक ही शब्द…….आफरीन !!
जरा नकाब हटाओ रुखसार से अपने
जहाँ को एक और तुम माहताब दो ..
बहुत खूब .. क्या कहने ... सुभान अल्ला ... इस दुनिया को एक चाँद दे दो ... लाजवाब शेर है ...
शब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
अल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....
बहुत खूब ....
बहुत सालों से ऐसा नहीं पढ़ा। ।
वाह...उत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
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