Monday, 8 October 2012

गाँव मेरा बूढा हो चला है

गाँव मेरा बूढा हो चला है
नयी कोपलें अब कहाँ आती है इसमें
बस पुरानी कुछ शाखें ही बची हैं
वो भी ज़र्ज़र हो गयी हैं
न वो जोश है न ही वो रंग
वो तो गनीमत है
कि आते जाते त्यौहार
थोडा रंग, थोड़ा जूनून भर जाते हैं
बहुत छोटा बसंत आता है
ये थोड़ा जवान दिखने लगता है
पर त्योहारों के जाने के बाद
यहाँ हमेशा पतझड़ सा मौसम है
गाँव के बूढ़े इकट्ठे हो बूढ़े पेड के नीचे
अपने जिंदगी के अंतिम दिनों कों गिनते हैं
और अपनी जवानी की यादें बुनते हैं
मुझे है याद दिन जो बीते थे यहाँ पर
वो हंसना खेलना कबड्डी, पिट्टो हमारा
सडको पर खेलते बच्चे अब दिखते कहाँ हैं
वो राजनीति पर गहम चर्चे होते कहाँ है
अभी तक गाँव की जो तस्वीर
मेरे ज़हन में बसी थी
वो झूठी लगने लगी है
अब आया हूँ तो लगता है
कि गाँव मेरा बूढा हो चला है

10 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aafareen....aafareen....aafareen...sundar......

Devdas!!! said...

mast

Dimple said...

Kya baat hai...!!! Ishq vishq toh nahi hua na pyaare ??
Aise dil ko choohne waale khayaal tabhi aate hain :)
Jo bhi hai... bahut kamaal ka likha hai... Hope u continue :)

नीरज गोस्वामी said...

आज के गाँव की जर्जर अवस्था का सटीक चित्रण...बहुत खूब भाई

नीरज

pavitra said...

bahut khoob... sach aur dil ko choone waalaa.....

pavitra said...

bahut khoob... sach aur dil ko choone waalaa.....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मन को उद्वेलित करती रचना .....गाँवों की यही स्थिति है.....

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया.....
गहन अभिव्यक्ति...

अनु

हरकीरत ' हीर' said...

वो तो गनीमत है
कि आते जाते त्यौहार
थोडा रंग, थोड़ा जूनून भर जाते हैं

बहुत सुन्दर ....!!

कविता रावत said...

सडको पर खेलते बच्चे अब दिखते कहाँ हैं
वो राजनीति पर गहम चर्चे होते कहाँ है
अभी तक गाँव की जो तस्वीर
मेरे ज़हन में बसी थी
वो झूठी लगने लगी है
अब आया हूँ तो लगता है
कि गाँव मेरा बूढा हो चला है
..ek tasveer uker dee aapne..
bahut khoob!