रात बीती है मगर अब भी सहर बाकी है
होश में आया हूँ मगर अब भी ज़हर बाकी है
कोई नींद से जगाये मुझे सुबह हुयी
आँख तो खुल गयी है नींद अभी बाकी है
गर्म है खून मगर उसमे उबाल आता ही नहीं
इतनी वहशत है ज़माने में, कसर कुछ और अभी बाकी है?
जहाँ में रंग न जाने कितने हैं
एक अमन का रंग है जो सदियों से बाकी है
बात शम्मा की क्यूँ कर रहा परवाने तू
उसी की आग में जलना तेरा जो बाकी है
नादाँ हो जो खुश हो इश्क के अफ़साने पर
अभी है वस्ल की शब हिज्र अभी बाकी है
तेरी बुज़दिली का ज़िम्मेदार ख़ुदा कैसे है
ताज-ए-हिंद में हक माँगना अभी बाकी है
उम्र जो ढल रही तेरी तो क्या हुआ मेरे दोस्त
जोश बाजुओं में और रगों में खून अभी बाकी है
दर्द दुनिया में है बहुत ये हमने मान लिया
ये भी माना तेरी आहों में तड़प बाकी है
मैं जानता हूँ कि तू घर में खड़ा सोच रहा
अहलेवतन को क्यूँ पूछूं घर है मेरा वो बाकी है
जाने क्या सोच रहे हैं धर्म के ठेकेदार यहाँ
हिन्दू मुस्लिम में भी इंसान अभी बाकी है
16 comments:
chandan bhai....dil ki gehraaiyon mein utartee hui rachna likhi hai aapne....kamaal kar diya...aur urdu ke shabdon ka istemaal to aafareen...aafareen....
lillah...aise hee likhte rahein..
गर्म है खून मगर उसमे उबाल आता ही नहीं
इतनी वेह्शत है ज़माने में, कुछ और कसर भी बाकी है?
waah
जाने क्या सोच रहे हैं धर्म के ठेकेदार यहाँ
हिन्दू मुस्लिम में भी इंसान अभी बाकी है
जहाँ में रंग न जाने कितने हैं
एक अमन का रंग है जो सदियों से बाकी है
सच्ची सटीक पंक्तियाँ .... प्रभावित कराती रचना ....
रात बीती है मगर अब भी सहर बाकी है
होश में आया हूँ मगर अब भी ज़हर बाकी है
बहुत खूब .....
Aur main na kehti thi...
tum mein likhne ki kalaa baaki hai :)
shukar hai kahaa mera maan liya...
khudah-ki-kasam tareefein aur bhi baaki hain :)
Regards,
Dimple
बहुत बढ़िया, लाजवाब!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुन्दर शब्दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।
बहुत सुन्दर शब्द और भाव पिरोये हैं आपने अपनी इस रचना में. बधाई स्वीकारें.इसे ग़ज़ल का रूप देने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होगा. आप अच्छा लिखते हैं लिखते रहें.
नीरज
जाने क्या सोच रहे हैं धर्म के ठेकेदार यहाँ
हिन्दू मुस्लिम में भी इंसान अभी बाकी है|
अपनी बात कहने का यही तरीका है बहुत अच्छे शेर है मुबारक हो
मैं जानता हूँ कि तू घर में खड़ा सोच रहा
अहलेवतन को क्यूँ पूछूं घर है मेरा वो बाकी है
यही सच है.
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है........
कोई नींद से जगाये मुझे सुबह हुयी
आँख तो खुल गयी है नींद अभी बाकी है
क्या शेर है दोस्त...... वाह वाह !!!
नादाँ हो जो खुश हो इश्क के अफ़साने पर
अभी है वस्ल की शब हिज्र अभी बाकी है
बहुत अच्छे..... जिंदाबाद !!!!
हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये....... बहुत प्रभावशाली ग़ज़ल है ये.....!!!!!
bahut hi badhiya likha hai aapne...abhar
जाने क्या सोच रहे हैं धर्म के ठेकेदार यहाँ
हिन्दू मुस्लिम में भी इंसान अभी बाकी है
आज पहली बार आपके ब्लॉग तक आया हूँ ....आपकी रचनात्मकता को पढ़कर में बहुत प्रभावित हुआ ....आपकी इस ग़ज़ल का हर शेर गहरे अर्थ ध्वनित करता है ....आखिर किसकी व्याख्या करूँ और किस पर टिप्पणी करूँ .....आपका आभार ...आशा है शीघ्र ही आपकी नयी रचना पढने को मिलेगी ...!
चन्दन जी ... लाजवाब गज़ल है आपकी ... सुन्दर शेर ... नयी रचना लिखे काफी समय हो गया लगता है आपको ... कुछ नया जरूर लिखें ...
Yunhi likhte raho yeh tammana hai meri,
Dil to chu hi liya hai,bas aasman chuna baki hai :)
बेहद सुन्दर गज़ल...उम्दा भाव ... बहुत खूब ..
Post a Comment