Saturday, 25 February 2012

हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए

हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए
दफन भी हो गए तो इस सरजमीं को नमी दे पाए

बला सी ख़ूबसूरत जो आँखे हैं उन्ही की कसम
तेरी वही आँखे थी जो मुझे ये ख्वाब हंसी दे पाए

उसने खेतों में दिन रात खून और पसीने बहायें है
ताकि अपने बच्चों को वो कुछ ग़ज़ ज़मीं दे पाए

वो तो सैयाद है, उसे काम पिंजरों में कैद परिंदों से
कब फडफडाते पंख उसकी आँखों को नमी दे पाए

या खुदा! आज फिर से इंसानियत का क़त्ल हुआ
अब वो वजह ढूंढता हूँ जो तेरे होने का यकीं दे पाए