Sunday, 29 January 2023

बचपन नादान बहुत था

बचपन नादान बहुत था

खाली आंगन था मगर

खेलने का सामान बहुत था

अभाव वाली जिंदगी थी

पर जीने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


गाय बछड़े संग सुबह थे बीते

दुपहर बीती पेड़ों पर

शाम के शाम अलाव का संगत

रस्ते बीते थे मेड़ों पर

तारों के नीचे खाट बिछी थी

और दादी की कहानियों में ज्ञान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


आज उस नादान बचपन को

नन्हीं बाहों, व्याकुल आंखों में देख रहा हूं

अभाव तो नहीं है ज्यादा

पर भाव वही देख रहा हूं

तुतले सवालात में घिर के समझा

गांव छोटा था मगर वहां सीखने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था