Saturday, 28 May 2011

रात बीती है मगर अब भी सहर बाकी है

रात बीती है मगर अब भी सहर बाकी है
होश में आया हूँ मगर अब भी ज़हर बाकी है

कोई नींद से जगाये मुझे सुबह हुयी
आँख तो खुल गयी है नींद अभी बाकी है

गर्म है खून मगर उसमे उबाल आता ही नहीं
इतनी वहशत है ज़माने में, कसर कुछ और अभी बाकी है?

जहाँ में रंग न जाने कितने हैं
एक अमन का रंग है जो सदियों से बाकी है

बात शम्मा की क्यूँ कर रहा परवाने तू
उसी की आग में जलना तेरा जो बाकी है

नादाँ हो जो खुश हो इश्क के अफ़साने पर
अभी है वस्ल की शब हिज्र अभी बाकी है

तेरी बुज़दिली का ज़िम्मेदार ख़ुदा कैसे है
ताज-ए-हिंद में हक माँगना अभी बाकी है

उम्र जो ढल रही तेरी तो क्या हुआ मेरे दोस्त
जोश बाजुओं में और रगों में खून अभी बाकी है

दर्द दुनिया में है बहुत ये हमने मान लिया
ये भी माना तेरी आहों में तड़प बाकी है

मैं जानता हूँ कि तू घर में खड़ा सोच रहा
अहलेवतन को क्यूँ पूछूं घर है मेरा वो बाकी है

जाने क्या सोच रहे हैं धर्म के ठेकेदार यहाँ
हिन्दू मुस्लिम में भी इंसान अभी बाकी है


Tuesday, 24 May 2011

अंतर्मन

अन्दर से कुछ आवाज़ आती थी
जैसे कुछ बुला रहा हो
बहुत कोशिशों के बाद भी 
सुन नहीं पाता
मगर ऐसा लगता जैसे
मुझे रुला रहा हो
दिन बीते
साल बीते
ये सिलसिला चलता रहा
उसकी आवाज़
मुझतक पहुँचने की कोशिश करती 
और मैं
अन्दर ही अन्दर रोता रहा
अब वो सिलसिला बंद होने लगा है
शायद वो थक गया
आवाज़ दे कर
और शायद मेरे आंसू भी
अब सूख चले हैं
अब मैं उसे आवाज़ देता हूँ
और वो है कि सुनता नहीं है
अब बस ख़ामोशी है
अब बस सन्नाटा है
अब मन ख्वाब कोई बुनता नहीं
कुछ कहता और सुनता नहीं
अब कुछ कुछ समझ में आ रहा है
उसकी आवाज़ थमी नहीं
वो ही थम गया है
वो मेरा अंतर्मन था
मुझे जगा रहा था
अब खुद सो गया है
सदा के लिए