Tuesday, 24 May 2011

अंतर्मन

अन्दर से कुछ आवाज़ आती थी
जैसे कुछ बुला रहा हो
बहुत कोशिशों के बाद भी 
सुन नहीं पाता
मगर ऐसा लगता जैसे
मुझे रुला रहा हो
दिन बीते
साल बीते
ये सिलसिला चलता रहा
उसकी आवाज़
मुझतक पहुँचने की कोशिश करती 
और मैं
अन्दर ही अन्दर रोता रहा
अब वो सिलसिला बंद होने लगा है
शायद वो थक गया
आवाज़ दे कर
और शायद मेरे आंसू भी
अब सूख चले हैं
अब मैं उसे आवाज़ देता हूँ
और वो है कि सुनता नहीं है
अब बस ख़ामोशी है
अब बस सन्नाटा है
अब मन ख्वाब कोई बुनता नहीं
कुछ कहता और सुनता नहीं
अब कुछ कुछ समझ में आ रहा है
उसकी आवाज़ थमी नहीं
वो ही थम गया है
वो मेरा अंतर्मन था
मुझे जगा रहा था
अब खुद सो गया है
सदा के लिए

4 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

chandan bhai, antarman ki vyathaa ko itni gehraai se shaayad maine kisi ko bayaan karte nahee dekha, aap to kamaal karte hain har baar aur is baar bhee aapne dil mein utar jaane wali rachna likhi hai...

aabhaar!

संजय भास्‍कर said...

अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

pavitra said...

wow chandan!
its very gud....liked it very much...!

pavitra said...

wow Chandan!!
its too good....liked it very much...!