कौन कहता है जंगल बसाए नहीं जाते
हमारे शहरों को देखो कंक्रीट के जंगल खड़े हुए हैं
फर्क इतना है की इनमे स्वच्छंदता नहीं है
ये जंगल पिंजरों से बने हैं
जिनमे प्रवासी पंछी आ कर बसेरा डालते हैं
और हमेशा की कैद को स्वयं ही अपनाते हैं
'और' की चाह में आते हैं अपने घर से दूर
फिर भूल जाते हैं वो चहचहाना, गाना
मैं भी आज घर से मीलों दूर एक आशियाना ढूंढ रहा हूँ
उसी कंक्रीट के जंगल में हमेशा कैद होने के लिए
1 comment:
Hello Frmc
Sorry for delay in commenting...
Very nice concept... and true too :)
Nicely written and hope you keep writing :-)
Regards
D
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