Saturday, 8 October 2016

तुझसे प्यार क्यूँ न हो

दिल मेरा ये जार जार क्यूँ न हो
टूट कर यूँ खार खार क्यूँ न हो

दिल्लगी तो कर चुके तुझसे रकीब
दिल मेरा अब तार तार क्यूँ न हो

आपकी सूरत में ही कुछ बात है
दिल का लगना बार बार क्यूँ न हो 

आपकी गुस्ताख नज़रें और वो कातिल अदा
गो आपसे फिर प्यार प्यार क्यूँ न हो

तुम ही मेरी हीर हो, लैला हो तुम
लब पे मेरे नाम तेरा बार बार क्यूँ न हो

अक्स तेरा आँख में यूँ बस चुका
अश्क में भी यार यार क्यूँ न हो

तू ही है महताब भी मोहसिन भी तू
महफिलों में ज़िक्र तेरा बार बार क्यूँ न हो

'चन्दन' की शीतलता और 'सुगंध' हो तुम
मेरी ग़ज़लों में तेरा शुमार क्यूँ न हो...

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