Tuesday, 26 December 2023

हाँ याद है

तुमसे मेरा अधूरा सा मुहब्बत का इज़हार 
उन अधछुई उँगलियों से झलकता इकरार 
हाँ वो बड़ा सादा अधूरा अपना प्यार 
मुझे अभी भी, हाँ, अभी भी याद है 

वो देर रात होती लम्बी गुफ्तगू 
सारी हरारत एक पल में उड़न छू 
वो कुछ मिनटों में सदियों का सा इंतज़ार 
ग़ज़लों गीतों में साझा हो बेशुमार 
तुमसे मेरा अधूरा मुहब्बत का इज़हार 
मुझे अभी भी, हाँ, अभी भी याद है 




Thursday, 5 October 2023

I am but dying

I am but dying 

deep within me 

my soul is crying 

I am but dying 

 

left alone on torturous tone 

cast on a path trying to atone 

those venomous thoughts 

and the virtues sought 

nothing seems right 

see how hard I am trying 

I am but dying 

 

Burning from inside 

with thoughts and divide 

the trails are gone 

fate that I have drawn 

everything have lost 

at an eternal cost 

and now I am sighing 

I am but dying 

Friday, 1 September 2023

कुछ मीठी यादें लेता जा

नई मंज़िल रही पुकार सनम 
जैसे सुबह की पहली लाल किरण 
और मांझी की पतवार पवन 
कुछ और कदम, कुछ और कदम 
मांझी की भाँती चलता जा
जाने से पहले ओ राही 
कुछ मीठी यादें लेता जा 

जो लम्हे जी कर जाएगा 
उनको मुट्ठी में भींचे जा 
अनजान नगर अनजान डगर
जाने से पहले ओ राही 
कुछ प्यारी बातें लेता जा 
जाने से पहले ओ रही 
कुछ मीठी यादें लेता जा 

दो दिन की तो ये बात नहीं 
ऐसा छोटा तो ये साथ नहीं 
बरसों के संजोये किस्से हैं 
कुछ तेरे, कुछ मेरे हिस्से हैं 
वो हिस्से संग तू लेता जा 
जाने से पहले ओ रही 
कुछ मीठी यादें लेता जा 

ये देस तुम्हारा अपना है 
ये मिट्टी अपनी मिट्टी है 
मिट्टी की थोड़ी सी खुशबू 
अपने दामन में लेता जा 
जाने से पहले ओ राही 
कुछ मीठी यादें लेता जा 

Sunday, 29 January 2023

बचपन नादान बहुत था

बचपन नादान बहुत था

खाली आंगन था मगर

खेलने का सामान बहुत था

अभाव वाली जिंदगी थी

पर जीने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


गाय बछड़े संग सुबह थे बीते

दुपहर बीती पेड़ों पर

शाम के शाम अलाव का संगत

रस्ते बीते थे मेड़ों पर

तारों के नीचे खाट बिछी थी

और दादी की कहानियों में ज्ञान बहुत था

बचपन नादान बहुत था


आज उस नादान बचपन को

नन्हीं बाहों, व्याकुल आंखों में देख रहा हूं

अभाव तो नहीं है ज्यादा

पर भाव वही देख रहा हूं

तुतले सवालात में घिर के समझा

गांव छोटा था मगर वहां सीखने का सामान बहुत था

बचपन नादान बहुत था