Saturday, 14 August 2010

दोस्त

I never thought that I would be expressing my views my thoughts on blogs, never thought that I would be writing. But it was one lovely friend of mine "Dimple" who made me write. Now, it is her words again which made me write this. So I dedicate it to her.

दुआ भी न माँगना रब से मेरी खातिर,
कि हमको रब से भी कुछ मांगना अच्छा नहीं लगता|

ये ना सोचना ऐसा कि मुझको रंज रब से है,
कि रब भी मेरा माँगा कभी टाला नहीं करता|

कहीं ये पूछ बैठो तुम कि मैं मांग कब बैठा,
तो ख़ुद को देख लो समझो कि मैं ऐसे नहीं ऐंठा|

के तेरे जैसे दोस्त जो मुझे बिन मांगे मिलते हैं
तो बोलो के ख़ुदा से अब ये मेरा माँगना कैसा|

5 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

Dimps ko samarpit kavita..bahut sundar lagi..
itni pyari shakhshiyat ke liye ye tofha bahut khoobsurat hai..
dimps ko bhaut bahut pyar..
dil se likhi hui hai ye kavita... bahut acchi lagi..

Dimple said...

Hello FRMC,

My My... !!
Itna pahaad pe mat chadaao yaar :)
Anyhow, it is magnificient. Beautifully written !!

U really write very well.

Regards,
Dimple :)

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kya baat....kya baat....kya baat!!

हरकीरत ' हीर' said...

दुआ भी न माँगना रब से मेरी खातिर,
कि हमको रब से भी कुछ मांगना अच्छा नहीं लगता|

वाह .....!!

क्या बात है ...बहुत खूब .....!!
लीजिये नहीं मांगते आपके लिए दुआ .......!!

Rohit Singh said...

वाह क्या बात है....ऐसे ही तो लोग अपने को प्रस्तुत करना सीखते हैं....क्रिया की प्रतिक्रिया में....दोनो हाथ से ताली बजाने का मन कर रहा है पर तुम देख नहीं पाऔगे सो बस वाह वाह वाह वाहहहहहहहह.....