Sunday, 19 December 2010

बंदिश

ये बंदिशें बड़ी अजीब होती हैं,
हर इंसान का नसीब होती हैं|

चाहता हूँ तोड़ जाऊं अभी,
खुले में पंख फैलाए उड़ जाऊं अभी|

हर तरह से जोर-ओ-आजमाइश की,
फुसला के मनाने की भी साजिश की|

ये मेरे मन से जुड़ी हैं न छूटेंगी,
लाख चाहूँगा फिर भी न टूटेंगी|

ये जंजीरें हैं मेरे ईमान की,
मेरे अन्दर बैठे हुए उस इंसान की|

ये मेरा है मुझीसे टकराता है,
ये मेरा ज़मीर है मुझे इंसान बनाता है|

5 comments:

pavitra said...

vaah!!
bahut achchi hai..aur sach bhi hai..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsurat prastuti sir.

ये मेरे मन से जुड़ी हैं न छूटेंगी,
लाख चाहूँगा फिर भी न टूटेंगी|

deep....

Dimple said...

Maine kahaa tha na talent hai :)
Meri sunta kaun hai asaani se :P

Qatal-e-aam nahi Qatal-e-khaaaas :)

Very well done

Regards,
Dimple

Fani Raj Mani CHANDAN said...

@Dimps :
Gar sunaa nahin karte tawjjo diya nahin karte
ye jo do char ashaar likhe hain, likha nahin karte

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Thank you all
for your comments and encouragement :-)