ये बंदिशें बड़ी अजीब होती हैं,
हर इंसान का नसीब होती हैं|
चाहता हूँ तोड़ जाऊं अभी,
खुले में पंख फैलाए उड़ जाऊं अभी|
हर तरह से जोर-ओ-आजमाइश की,
फुसला के मनाने की भी साजिश की|
ये मेरे मन से जुड़ी हैं न छूटेंगी,
लाख चाहूँगा फिर भी न टूटेंगी|
ये जंजीरें हैं मेरे ईमान की,
मेरे अन्दर बैठे हुए उस इंसान की|
ये मेरा है मुझीसे टकराता है,
ये मेरा ज़मीर है मुझे इंसान बनाता है|
5 comments:
vaah!!
bahut achchi hai..aur sach bhi hai..
khoobsurat prastuti sir.
ये मेरे मन से जुड़ी हैं न छूटेंगी,
लाख चाहूँगा फिर भी न टूटेंगी|
deep....
Maine kahaa tha na talent hai :)
Meri sunta kaun hai asaani se :P
Qatal-e-aam nahi Qatal-e-khaaaas :)
Very well done
Regards,
Dimple
@Dimps :
Gar sunaa nahin karte tawjjo diya nahin karte
ye jo do char ashaar likhe hain, likha nahin karte
Thank you all
for your comments and encouragement :-)
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