Thursday, 21 July 2011

अम्न का पहर

कहीं फट रहे हैं बम, कहीं बरपा हुआ कहर
शब कब से चल रही जाने होगी कब सहर

कुछ लोग मर गए और कुछ हो गए फना
उनको नहीं फिकर कोई वो हैं इससे बेखबर

बच्चे हुए अनाथ और बहनें हुंई बेवा 
इससे भी है अनजान और ये सो रहा शहर

वो धर्म बेचते हैं और करते हैं सियासत
इंसानियत को वो ही हैं जो दे रहे जहर

वो माँ बिलख रही है जिसका पूत मर गया
मुड़ मुड़ के देखती है वो बेटा गया जिधर

सुनता हूँ पब में झूमते और नाचते थे वो
खून में था सन रहा जब इस देश का जिगर

इंतज़ार है 'फणि' कि शब ये ढल भी जाये अब
खुशियों का शबब ले कर आये अम्न का पहर

10 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

सुनता हूँ पब में झूमते और नाचते थे वो
खून में था सन रहा जब इस देश का जिगर

chandan bhai, bahut hee maarmik rachna hai apki!

रेखा said...

सार्थक और बेहतरीन रचना

Rakesh Kumar said...

इंतज़ार है 'फणि' कि शब ये ढल भी जाये अब
खुशियों का शबब ले कर आये अम्न का पहर

बहुत सुन्दर मार्मिक भावों से ओतप्रोत प्रस्तुति है आपकी.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

Dimple said...

Mujhe toh yeh samajh nahi aa rahaa.. kaun se shabd kosh se tipanni ke liye shabd laau...
kamaal kar diya... mere paas kash aise shabd hote jo tumhari rachnaao ki tareef kar paate...!! ^!^

दिगम्बर नासवा said...

वो धर्म बेचते हैं और करते हैं सियासत
इंसानियत को वो ही हैं जो दे रहे जहर ...

बहुत खूब ... सच में आज इंसानियत मर चुकी है ... समाज पर प्रहार हैं आपके शेर ...

रश्मि प्रभा... said...

dard ke hisse ko rekhankit ker diya hai... phir bhi khamoshi hai

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत बढ़िया ...प्रभावित करती रचना

mridula pradhan said...

इंतज़ार है 'फणि' कि शब ये ढल भी जाये अब
खुशियों का शबब ले कर आये अम्न का पहर
bahut sunder likhe hain......

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

pahali baar aayaa hun yahan par, ab is blog ko apni ghumakkadi men shamil kar leta hun. bahut achche khayal pirote hain aap. badhai. thale baithe par aap ka svagat hai.

केवल राम said...

वो धर्म बेचते हैं और करते हैं सियासत
इंसानियत को वो ही हैं जो दे रहे जहर

सच्चाई को बखूबी वयां किया है आपने ......आपका आभार