Saturday 3 December 2011

ज़िन्दगी

सोचा रुकूँ, ज़िन्दगी से दो चार बातें करूँ
पर ये ज़िन्दगी न जाने क्यूँ बदहवास सी भागती जा रही है.
न जाने इसे क्या चाहिए न जाने किसकी तलाश है!

है किस फ़िराक में ज़िन्दगी, तेरे दिल में कौन सी आरजू.
ज़रा कुछ खबर इधर भी दे, आ बैठ कर लें ज़रा गुफ्तगू

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

नीरज

रेखा said...

सुन्दर प्रस्तुति ...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

gehree rachna chandan bhai

Rajput said...

ज़रा कुछ खबर इधर भी दे, आ बैठ कर लें ज़रा गुफ्तगू..
बहुत सुन्दर लाइनें .

Dimple said...

Lesser lines - deep meaning :)
Depth and intensity - once again!

pavitra said...

beautiful lines....:)