Thursday, 30 May 2013

इन मासूम सी आँखों में कुछ ख्वाब दो

इन मासूम सी आँखों में कुछ ख्वाब दो
बढ़ते हुए बच्चों के हाथों में किताब दो

उन ख़्वाबों में चलो कुछ रंग भर दें
सूखने से पहले उन पौधों में आब दो

बंजर हो जायेंगे वो सुनहरे खेत चलो
इस जमीन को झेलम और चिनाब दो

टूटते तारों में छुपा है एक नया सूरज
चलो अँधेरे जहां को एक आफताब दो

चेहरे के नूर से चमकती हैं आँखे मेरी
गेसुओं से अपने चेहरे को हिजाब दो

जरा नकाब हटाओ रुखसार से अपने
जहाँ को एक और तुम माहताब दो

मेरी आँखों में अभी भी दम है बाकी
मेरे प्याले में साकी थोड़ी शराब दो

जिससे मिलो 'चन्दन' प्यार से मिलो
दुनिया को मुहब्बत तुम बेहिसाब दो

Tuesday, 28 May 2013

नींद से प्रेम



प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

तुझसे मिलने के बाद प्रिये मैं
सुख दुःख अपना भूल चूका
तेरी इस कोमल छाया में मैं
दुर्गुण अपने भूल चूका
तुझसे मिलने की बेला में मैं 
भूला जग का खेल प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

जग लाख सताए ताने दे
तुम तनिक रोष न दिखाती हो 
हो कैसी कठिन  भी बेला पर
तुम अपने पास बुलाती हो
स्नेह तुम्हारा न होता कम
चाहे दिन हो या रात प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

जो दुनिया मैं न देख सका 
तेरी संगत उसे दिखाती है 
कोई वैद हकीम करेगा क्या 
जब कभी तू बैर दिखाती है 
किसी और में होगी बात कहाँ 
जो तुझमे हैं मेरी बात प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
तुम 'नींद' ही मेरी प्रियतम हो 
तुझसे ही अपना प्रेम प्रिये 

Monday, 27 May 2013

कुछ कहने को अश'आर मिलते नहीं हैं

ख्यालों के बादल आये उमड़ के
कलम मेरी क्यूँ चलने पाती नहीं है

बरसने का आलम तो लगता बहुत है 
मगर क्यूँ ये बारिश फिर होती नहीं है

कहना बहुत है, कह पाता नहीं हूँ
है काली घटा पे बरस पाती नहीं है 

जुबां जैसे मेरी थम सी गयी हो
कुछ कहने को अश'आर मिलते नहीं हैं 

Khayaalo ke baadal aaye umad ke
Kalam meri kyun chalne paati nahi hai

Barasne ka aalam to lagtaa bahut hai
Magar kyun ye baarish fir hoti nahin hai

Kahnaa bahut hai kah paata nahi hoon
Hai kaali ghataa pe baras paati nahin hai

Zubaan jaise meri tham si gayee ho
Kuchh kahne ko asha'ar milte nahin hai