Tuesday 28 May 2013

नींद से प्रेम



प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

तुझसे मिलने के बाद प्रिये मैं
सुख दुःख अपना भूल चूका
तेरी इस कोमल छाया में मैं
दुर्गुण अपने भूल चूका
तुझसे मिलने की बेला में मैं 
भूला जग का खेल प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

जग लाख सताए ताने दे
तुम तनिक रोष न दिखाती हो 
हो कैसी कठिन  भी बेला पर
तुम अपने पास बुलाती हो
स्नेह तुम्हारा न होता कम
चाहे दिन हो या रात प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये

जो दुनिया मैं न देख सका 
तेरी संगत उसे दिखाती है 
कोई वैद हकीम करेगा क्या 
जब कभी तू बैर दिखाती है 
किसी और में होगी बात कहाँ 
जो तुझमे हैं मेरी बात प्रिये 
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
तुम 'नींद' ही मेरी प्रियतम हो 
तुझसे ही अपना प्रेम प्रिये 

2 comments:

Dimple said...

Bahut hi badiya topic... mazaa aa gayaa padd ke.. :)

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

बस अब मुझे बिस्तर न लगाना पड़ जाए!

खूबसूरत रचना!