सरिस्का यात्रा - दूसरा दिन
सुबह की चाय ने हम सबकी नींद खोली
क्या खूब थी जलपान में परांठे और मोर की बोली
अगला पड़ाव था सरिस्का का राष्ट्रीय उद्यान
फिर हमें जाना था भानगढ़ के भूतिया किला महान
सरिस्का में तीन जीपों में निकली हमारी सफारी
बाघ थे हिरन थे और नीलगायों की संख्या थी भारी
बाघ और बाघिन ने खूब कराया इंतज़ार
रोंगटे खड़े हो गए जब सुनी उसकी दहाड़
बीच जंगल में पानी पीने को पहुंचे काली घाटी
ऊपर से नीचे सराबोर धूल और माटी माटी
काली घाटी में चिड़ियों ने हमसे लाड़ दिखाया
मधुमक्खियों वाले नल से हमने जीतू भाई को पानी पीता पाया
वहाँ से निकले आगे को चले भानगढ़ की ओर
सबकी हालत पस्त हो चली भूख लगी थी जोर
भान गढ़ के ढाबे में खायी मिटटी दाल और रोटी
फेल हो गयी जिसके आगे बटर चिकेन की बोटी
भानगढ़ के किले को खूब किया एक्सप्लोर
भूत हमें तो नहीं मिले लंगूर दिखे और मोर
थक थक के हम चूर हो कर आये अन्दर बस के
अब कुछ और नहीं चाहिए सिवाय निद्रा रस के
भूत महल से निकले फिर भी भूतों की बात न हो
ऐसा तो होना ही नहीं था, भूतों की कथा न हो
भूत प्रेतों की कहानी में पूनम ऐसे मशगूल हुयी
अमित ने ऐसे डराया, चीखी सब कुछ भूल गयी
सफ़र समाप्त हुआ इस तरह कविता हो गयी पूरी
माफ़ी अगर कुछ बात रह गयी हो अभी अधूरी