जयपुर साहित्य उत्सव की रिकॉर्डिंग में जावेद अख्तर और गुलज़ार साहब को सुन रहा था और उनकी कविताओं की विशाल समंदर में डूबे जा रहा था और ये ख़याल ज़हन में आ गया. पेश है उन सभी लफ़्ज़ों के फनकारों की शान में
कौन हैं ये फनकार लफ़्ज़ों के
साधारण सी बात को असाधारण ढंग से कह जाने का हुनर
जैसे साधारण दिखने वाले पत्थर पर नकाशी कर एक बेजोड मूर्ती बना दी हो
जैसे एक गोताखोर समंदर की अनजानी गहराइयों से मोती चुनके ले आया हो
जैसे पल में शब्दों को धागे में पिरो कर एक सुनहरा हार बना दें
की जैसे जादूगर का रचा मायाजाल जिससे निकलने का दिल न करे
ये कौन हैं? ये हुनर कहाँ से आया?
सुने तो इनको ऐसा लगता है
जैसे खानसामा इक पांच सितारा होटल का
तरह तरह के बेजोड मसाले डाल के उसमे
एक नई डिश बना के पेश कर रहा हो
या की जैसे हसीं नज़ारे से पर्दा उठ रहा हो हौले हौले
सुन के इनको ऐसा है लगता
इतना नयापन इस कहानी में आया कहाँ से
फिर सोचता हूँ ये तो फनकार हैं लफ़्ज़ों के
ये जब बोलते हैं तो मिस्री घोलते हैं
हमारा तो काम है उस मिठास का आनंद लेना
कौन हैं ये फनकार लफ़्ज़ों के
साधारण सी बात को असाधारण ढंग से कह जाने का हुनर
जैसे साधारण दिखने वाले पत्थर पर नकाशी कर एक बेजोड मूर्ती बना दी हो
जैसे एक गोताखोर समंदर की अनजानी गहराइयों से मोती चुनके ले आया हो
जैसे पल में शब्दों को धागे में पिरो कर एक सुनहरा हार बना दें
की जैसे जादूगर का रचा मायाजाल जिससे निकलने का दिल न करे
ये कौन हैं? ये हुनर कहाँ से आया?
सुने तो इनको ऐसा लगता है
जैसे खानसामा इक पांच सितारा होटल का
तरह तरह के बेजोड मसाले डाल के उसमे
एक नई डिश बना के पेश कर रहा हो
या की जैसे हसीं नज़ारे से पर्दा उठ रहा हो हौले हौले
सुन के इनको ऐसा है लगता
इतना नयापन इस कहानी में आया कहाँ से
फिर सोचता हूँ ये तो फनकार हैं लफ़्ज़ों के
ये जब बोलते हैं तो मिस्री घोलते हैं
हमारा तो काम है उस मिठास का आनंद लेना