आँधी में नदी के पार जाना कठिन लगता है
कभी कभी खुछ ख़याल टकराते रहते हैं, आपको उन्हीं खयालों से रूबरू कराने की ख्वाहिश लिए ये ब्लॉग आपकी खिदमत में हाज़िर है
पेड़ की शाख़ से लटके झूले और साथ ही आम का बाग़ान छोड़ा
गाँव से दूर आ गये हम शहर, फिर बड़े, और बड़े, बड़े शहर
बांध ली नाम कमाने की ललक, रिश्तों का दामन छोड़ा
बड़ा ओहदा, बड़ा नाम, साथ में बस काम ही काम
इक दर-ओ-दीवार की ख़ातिर परिवार का आँगन छोड़ा
ज़िंदगी यूँही बसर होती रही, ये उम्र भी यूँ कटती रही
छूट गई महफ़िलें, दावतें, और यारों का दामन छोड़ा
भाग कर थक गए, आ गये ज़िंदगी के हासिल पर
ढूँढते हैं वही अब, सालहा हमने जो चमन छोड़ा
बस ये ख्वाहिश है कि मिल जाये मुझे, फिर से मुझे
सुकून-ए-शजर, और जो गाँव में सूना सा आँगन छोड़ा
आँधियों के उखड़े पेड़ देखें हैं कभी?
या फिर इक उधड़ा हुआ पैरहन?
की जैसे पैबंद लगा कर ठीक करने की नाकाम कोशिश की हो किसी ने
अंधड़ में गिरे दरख़्तों की जड़ें वापस नहीं लगती
चिथड़े हुए कपड़े भी काम नहीं आते
आज ऐसा लग रहा है
की कोई तेज़ आँधी मेरी जड़ें हिलाने को आमादा हैं
की मैं कुछ पल में चीथड़ों में बदल जाऊँगा