Thursday, 15 February 2024

कठिन

 

हर रोज़ यूँ तनहा बिताना कठिन लगता है
आँधी में नदी के पार जाना कठिन लगता है 

हो ग़र अनजान रास्ता और लंबा सफ़र हो
हर पल अकेले पार पाना कठिन लगता है 

उल्फ़त के दिन हों, किसी से दिल्लगी हो 
बिना उनके निभाना कठिन लगता है 

रफ़ीक-ए-राह ना हो, न हो संगी न साथी 
तो दुनियादारी निभाना कठिन लगता है 

रहबर-ए-राह-ए-'अमल जब हो ना काबिल 
तो मंज़िल तक पहुँचना कठिन लगता है  

रियाया जो शहों से बात और हालात पूछे 
उनको यूँ मूरख बनाना कठिन लगता है 

ना कर पाएगा जो मन चंदन सा शीतल 
लक्ष्य को फिर भेद पाना कठिन लगता है 

Tuesday, 13 February 2024

आँगन

हुए बड़े, हमने घर छोड़ा, गाँव छोड़ा, खेत-खलिहान छोड़ा 

पेड़ की शाख़ से लटके झूले और साथ ही आम का बाग़ान छोड़ा 


गाँव से दूर आ गये हम शहर, फिर बड़े, और बड़े, बड़े शहर

बांध ली नाम कमाने की ललक, रिश्तों का दामन छोड़ा 


बड़ा ओहदा, बड़ा नाम, साथ में बस काम ही काम  

इक दर-ओ-दीवार की ख़ातिर परिवार का आँगन छोड़ा


ज़िंदगी यूँही बसर होती रही, ये उम्र भी यूँ कटती रही

छूट गई महफ़िलें, दावतें, और यारों का दामन छोड़ा 


भाग कर थक गए, आ गये ज़िंदगी के हासिल पर  

ढूँढते हैं वही अब, सालहा हमने जो चमन छोड़ा


बस ये ख्वाहिश है कि मिल जाये मुझे, फिर से मुझे 

सुकून-ए-शजर, और जो गाँव में सूना सा आँगन छोड़ा   





Saturday, 10 February 2024

आंधियाँ

आँधियों के उखड़े पेड़ देखें हैं कभी?

या फिर इक उधड़ा हुआ पैरहन?

की जैसे पैबंद लगा कर ठीक करने की नाकाम कोशिश की हो किसी ने 

अंधड़ में गिरे दरख़्तों की जड़ें वापस नहीं लगती 

चिथड़े हुए कपड़े भी काम नहीं आते 

आज ऐसा लग रहा है 

की कोई तेज़ आँधी मेरी जड़ें हिलाने को आमादा हैं 

की मैं कुछ पल में चीथड़ों में बदल जाऊँगा 

Wednesday, 7 February 2024

चेहरे की लक़ीरों की नाराज़गी कुछ इस तरह अता की 

आईना तोड़ कर हमने अपने आप से वफ़ा की 


सीयह से चाँद हो जाना, है तजुर्बे का जवाँ होना 

किताब-ए-ज़िंदगी में ये बात मैंने मुस्बता की


किसी की याद के ज़रिये ये ज़िक्र-ए-यार यूँ करना 

किसी मक़सद में की है या फिर ख़ामख़ा की