चेहरे की लक़ीरों की नाराज़गी कुछ इस तरह अता की
आईना तोड़ कर हमने अपने आप से वफ़ा की
सीयह से चाँद हो जाना, है तजुर्बे का जवाँ होना
किताब-ए-ज़िंदगी में ये बात मैंने मुस्बता की
किसी की याद के ज़रिये ये ज़िक्र-ए-यार यूँ करना
किसी मक़सद में की है या फिर ख़ामख़ा की
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